भोपाल । केन्द्र सरकार ने जीएसटी एक्ट जब लागू किया तो एक समान कर की बात तो कही, वहीं इससे व्यापारियों-उद्योगपतियों को राहत मिलने का भी दावा किया गया। मगर जबसे यह एक्ट लागू किया है तब से लेकर अब तक सैंकड़ों तो संशोधन किए जा चुके हैं और कई प्रावधानों को लेकर जबरस्त भ्रम की स्थिति भी रहती है। दूसरी तरफ धड़ाधड़ समन भी जारी किए जा रहे हैं, जिसके चलते यह पूरा एक्ट ही करदाताओं के लिए बड़ी मुसीबत बन गया है।
जीएसटी एक्ट इतना जटील है कि आसानी से किसी भी करदाता को समझ नहीं आता। वहीं रिटर्न से लेकर उसके प्रावधान इतने ज्यादा परेशानी भरे हैं कि चार्टर्ड एकाउंटेंट और अच्छे-अच्छे कर सलाहकार भी चकरघिन्नी हो जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के अभिभाषक जेके मित्तल का कहना है कि जब से जीएसटी एक्ट लागू किया गया है तब से यह उम्मीद थी कि इस नई कर व्यवस्था से व्यापारियों-उद्योगपतियों को राहत मिलेगी। मगर इसका उल्टा ही हुआ। विवादों के साथ-साथ करदाताओं के लिए नित नई मुसीबत भी खड़ी करता रहा है यह एक्ट। यहां तक कि इनपुट टैक्स क्रेडिट भी आसानी से नहीं मिलता और स्पष्टीकरण भी विभाग के अधिकारियों से लेने में परेशानी आती है। नतीजतन इसके कारण भी बहुत सारे विवाद खड़े हो गए हैं। केन्द्र सरकार बार-बार यह भी दावे करती रही है कि व्यापारियों को परेशान ना होना पड़े इसके लिए आसान कर प्रणाली लाई गई। जबकि अधिकारियों द्वारा धड़ल्ले से समन जारी किए जा रहे हैं। उसके कारण भी व्यापारियों-उद्योगपतियों में डर का माहौल है और व्यक्तिगत रूप से भी बयान देने के लिए करदाताओं को बुलाया जा रहा है।