नई दिल्ली । देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि तमिलनाडु में कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र (केकेएनपीपी) को सुरक्षा कारणों से बंद करने के आदेश का परमाणु क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जिसमें इस क्षेत्र में भारी निवेश भी शामिल है। शीर्ष अदालत, रिएक्टर के खर्च किए गए परमाणु ईंधन के भंडारण के लिए ‘अवे फ्रॉम रिएक्टर फैसिलिटी’ (एएफआर) स्थापित करने के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (एईआरबी) को दो सप्ताह के भीतर एक हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ को एईआरबी की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने बताया कि उन्हें अभी इस मुद्दे पर निर्देश मिला है, जो काफी संवेदनशील है और वह इसे शपथपत्र के जरिए अदालत के समक्ष रखना चाहते हैं। शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता वी गिरि से एएफआर के मुद्दे पर जनसुनवाई को पूरा करने के लिए एक अर्जी दायर करने को भी कहा।
शुरुआत में, मूल याचिकाकर्ता जी सुंदरराजन और अन्य की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि सुरक्षा चिंता के कारण संयंत्र को स्थानांतरित या बंद करने की आवश्यकता है क्योंकि यह न केवल तमिलनाडु के लोगों के लिए बल्कि पूरे दक्षिण भारत के लिए खतरनाक होगा। हालांकि, पीठ ने कहा, ‘अदालत द्वारा परमाणु ऊर्जा संयंत्र को बंद करने का आदेश देने से परमाणु क्षेत्र और क्षेत्र में किए गए भारी निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।’
भूषण ने कहा कि हाल के दिनों में छोटी-मोटी दुर्घटनाओं के कारण 20 बार संयंत्र बंद किया जा चुका है और भगवान न करे, कोई बड़ा हादसा हो जाए तो कुछ नहीं बचेगा। उन्होंने कहा कि परमाणु संयंत्र अधिक से अधिक खर्च किए गए ईंधन का निर्माण कर रहा है, जो क्षेत्र में रहने वाली आबादी के लिए खतरनाक है। उन्होंने दलील दी कि खर्च किए गए ईंधन के विशाल भंडार को पानी के भीतर विशाल टैंकों में संग्रहित किया जा रहा है जो रिएक्टर में उपयोग किए जाने वाले ईंधन से अधिक है और यदि कोई दुर्घटना होती है, तो यह ईंधन क्षेत्र की पूरी आबादी के लिए खतरनाक होगा।
भूषण ने कहा, ‘यह एक और फुकुशिमा परमाणु संयंत्र (जापान का) त्रासदी जैसा (2011 का) होगा।’ न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अदालत में जो परिदृश्य बनाया जा रहा है, वह वास्तव में हकीकत नहीं है। मेहता ने कहा, ‘‘खर्च किया गया ईंधन किसी तरल रूप या गैसीय रूप में नहीं बल्कि ठोस रूप में होता है और पानी से भरे विशाल टैंकों में संग्रहीत किया जाता है जहां से आवश्यकता पड़ने पर इसे फिर से उपयोग में लाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
ये विशाल पानी के टैंक परमाणु संयंत्र में नहीं बल्कि परमाणु संयंत्र परिसर में हैं। यह आबादी के लिए उतना खतरनाक नहीं है जितना कि अनुमान लगाया गया है, अन्यथा, सरकार इसे जारी रखने की अनुमति नहीं देती।’ पीठ ने मेहता से पूछा कि खर्च किए गए परमाणु ईंधन के सुरक्षित भंडारण के लिए ‘अवे फ्रॉम रिएक्टर फैसिलिटी’ (एएफआर) का निर्माण अदालत के आदेश के बावजूद क्यों नहीं किया गया। विधि अधिकारी ने कहा कि तमिलनाडु सरकार ने इस संबंध में कोई जन सुनवाई नहीं की है। गिरि ने कहा कि संयंत्र की सुरक्षा से संबंधित मुद्दे पर कुछ आपत्तियां हैं। पीठ ने कहा कि उसके लिए उचित होगा कि वह अधिकारियों को उन चीजों को करने के वास्ते बीच का रास्ता निकालने के लिए कहे।